पीएम मोदी की फोर्सेस के साथ दीवाली: एक उत्सव से बढ़कर, एक रणनीतिक परंपरा
भारत के अधिकांश लोगों के लिए, दीवाली “घर वापसी” का त्योहार है — परिवार की गर्माहट, घर में सजे दीयों की रौशनी और मिठाइयों की मिठास। लेकिन लगभग एक दशक से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अलग तरह की “घर वापसी” चुनी है — सीमाओं पर, समुद्र के मध्य, और बर्फीली चौकियों पर जहाँ भारत के रक्षक हर क्षण सतर्क खड़े रहते हैं। सशस्त्र बलों के जवानों के साथ दीवाली मनाने की उनकी परंपरा उनके कार्यकाल की एक प्रमुख पहचान बन चुकी है — एक ऐसी परंपरा जो केवल रस्म नहीं बल्कि एक गहरी भावना का प्रतीक है।
इस वर्ष का उत्सव गोवा के तट पर स्थित विशाल INS विक्रांत पर आयोजित हुआ — और शायद यह अब तक का सबसे प्रतीकात्मक आयोजन था। यह केवल एक प्रधानमंत्री का नौसैनिकों के साथ मिठाई बाँटने का क्षण नहीं था, बल्कि यह भारत की आत्मनिर्भरता और सामरिक शक्ति का सशक्त संदेश था। यह लेख इस अद्वितीय परंपरा के बहुआयामी महत्व को गहराई से समझाता है — जवानों का मनोबल बढ़ाने से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा की कथा गढ़ने तक और एक विशिष्ट राजनीतिक पहचान को सुदृढ़ करने तक।
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जवानों के साथ दीवाली क्यों? प्रधानमंत्री के रणनीतिक चयन का विश्लेषण
एक राष्ट्रीय नेता द्वारा सैनिकों के साथ त्यौहार मनाने की छवि अत्यंत शक्तिशाली होती है। यह एक सावधानीपूर्वक नियोजित आयोजन है जो अनेक रणनीतिक उद्देश्यों को साधता है, और प्रत्येक पहलू इसके प्रभाव को और गहरा बनाता है।
1. सर्वोच्च मनोबल बढ़ाने वाला कदम: “तुम ही मेरा परिवार हो”
सबसे मूल स्तर पर, यह कदम सशस्त्र बलों के लिए एक बड़ा मनोबल बढ़ाने वाला संदेश है। घर से दूर तैनात किसी सैनिक, नाविक या वायुसैनिक के लिए त्यौहार अक्सर अकेलेपन का समय होते हैं। ऐसे में देश के सर्वोच्च नेता की उपस्थिति उनके बलिदान की गहरी सराहना का प्रतीक बनती है।
व्यक्तिगत जुड़ाव: प्रधानमंत्री मोदी केवल औपचारिक भाषण देकर नहीं जाते — वे बातचीत करते हैं, मिठाई साझा करते हैं, और आरती में भाग लेते हैं। यह व्यक्तिगत स्पर्श उन्हें “परिवार” का हिस्सा महसूस कराता है। जैसा कि उन्होंने INS विक्रांत पर कहा, उनके साथ दीवाली मनाने से “रोशनी का यह पर्व और अधिक उज्ज्वल हो गया।” इस भाषा में सैनिकों को राष्ट्र से अलग नहीं बल्कि उसके प्रकाश स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया गया।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव: शीर्ष नेतृत्व द्वारा इस मान्यता से उन्हें वह गर्व और आत्म-सम्मान मिलता है जो कोई आधिकारिक पत्र नहीं दे सकता। यह संदेश देता है कि सर्वोच्च कमांडर उनकी भावना और त्याग को समझता है।
2. राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिबद्धता का सशक्त प्रतीक
हर वर्ष प्रधानमंत्री जहाँ दीवाली मनाने जाते हैं, वह स्थान यूं ही नहीं चुना जाता। यह भारत की रक्षा स्थिति को दर्शाने का एक रणनीतिक संकेत होता है।
- सीमा चौकियाँ (जैसे सियाचिन, उत्तराखंड): दुनिया के सबसे ऊँचे युद्धक्षेत्र पर जाना, राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा के प्रति उसकी अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
- फॉरवर्ड क्षेत्र (जैसे गुरेज़ सेक्टर, हिमाचल): हाल ही में तनावपूर्ण क्षेत्रों में उपस्थिति देश और विदेश दोनों को दृढ़ता और एकता का संदेश देती है।
- विमानवाहक पोत (INS विक्रांत): इस वर्ष का चयन प्रतीकात्मक दृष्टि से एक मास्टरस्ट्रोक था, जिसे हम आगे विस्तार से देखेंगे।
3. राजनीतिक कथा का निर्माण
राजनीतिक दृष्टि से, ये यात्राएँ एक सशक्त, निर्णायक और राष्ट्रवादी नेतृत्व की छवि बनाती हैं। दीवाली जैसे राष्ट्रीय पर्व पर इन दृश्यों का मीडिया कवरेज इन्हें और प्रभावशाली बना देता है — चाहे वह सैनिकों के बीच चिंतनशील प्रधानमंत्री की छवि हो या युद्धपोत पर हँसते-मुस्कुराते नेता की। ये दृश्य जनता के मन में राष्ट्रीय सुरक्षा और वीरता से जुड़ी एक ठोस पहचान स्थापित करते हैं।
INS विक्रांत पर दीवाली 2024: परंपरा का ऐतिहासिक क्षण
2024 की दीवाली केवल इस परंपरा की निरंतरता नहीं थी — यह उसका उत्कर्ष और विस्तार थी। स्वदेशी रूप से निर्मित विमानवाहक पोत INS विक्रांत का चयन कर प्रधानमंत्री मोदी ने सैन्य शक्ति, राष्ट्रीय गौरव और आर्थिक आत्मनिर्भरता के सूत्रों को एक साथ जोड़ा।
स्थल का महत्व: INS विक्रांत
INS विक्रांत मात्र एक युद्धपोत नहीं है, यह भारत के रक्षा-औद्योगिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। इसका कमीशनिंग “मेक इन इंडिया” की सफलता का उदाहरण था।
‘आत्मनिर्भरता’ का उत्सव: जब पीएम मोदी ने इसके डेक पर दीवाली मनाई, तो उन्होंने रोशनी के इस पर्व को भारतीय आत्मनिर्भरता की विजय से जोड़ दिया। अपने संबोधन में उन्होंने तीनों सेनाओं के समन्वय की सराहना की, और अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश दिया कि अब यह समन्वय स्वदेशी तकनीक और सामर्थ्य से समर्थित है।
दुनिया के लिए संकेत: विमानवाहक पोत शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक होते हैं। ऐसे पोत पर दीवाली मनाना और उसे विश्व स्तर पर प्रसारित करना यह संदेश देता है कि भारत अब समुद्री क्षेत्र में अपनी शक्ति और सुरक्षा हितों की रक्षा करने के लिए तैयार है।
आयोजन का दृश्य: समन्वय और उत्सव
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कार्यक्रम में गंभीरता और उत्सव का अद्भुत संतुलन था।
नौसैनिकों से संवाद: पीएम मोदी ने नौसैनिक कर्मियों और उनके परिवारों से आत्मीय बातचीत की, हँसी-मजाक साझा किया, जिससे यह आयोजन मानवीय संवेदनाओं से भर गया।
वीरता का सम्मान: उन्होंने हाल की नौसेना अभियानों का उल्लेख करते हुए नौसैनिकों के योगदान को नमन किया — जैसे ‘ऑपरेशन संकल्प’ और ‘ऑपरेशन सिंदूर’।
दृश्य वैभव: प्रधानमंत्री की आरती करते हुए तस्वीरें, उनके चारों ओर सफेद वर्दी में नाविक, और पीछे खड़ा विशाल विमानवाहक पोत — ये छवियाँ भारत के राजनीतिक और सैन्य इतिहास में अमर होने योग्य हैं।

सीमाओं पर त्योहारों की विरासत: पीएम की दीवाली यात्राओं की झलक
INS विक्रांत पर दीवाली की गहराई को समझने के लिए पिछले वर्षों की यात्रा देखना आवश्यक है — यह कोई आकस्मिक परंपरा नहीं बल्कि एक सुविचारित सिलसिला है।
- 2014: सियाचिन ग्लेशियर की यात्रा से शुरुआत, दुनिया के सबसे ऊँचे युद्धक्षेत्र में सैनिकों के साथ दीवाली मनाई।
- 2015–2016: पंजाब बॉर्डर और हिमाचल-कश्मीर के LOC क्षेत्रों का दौरा।
- 2017–2018: गुरेज़ सेक्टर (जम्मू-कश्मीर) और हर्षिल (उत्तराखंड) में सीमावर्ती चौकियों पर उत्सव।
- 2019: राजस्थान के जावाजा पोस्ट पर भारत-पाक सीमा के पास दीवाली।
- 2020: कोविड-19 के समय जैसलमेर में सेना स्टेशन का दौरा।
- 2021–2022: नौशेरा सेक्टर और कारगिल वॉर मेमोरियल पर श्रद्धांजलि के साथ दीवाली मनाई।
इन यात्राओं से यह स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री ने हर मोर्चे को छुआ है — उत्तर के ग्लेशियर, पश्चिम का रेगिस्तान, पूर्व के पर्वत और अब समुद्र का विस्तार।

व्यापक प्रभाव: सुर्खियों से परे
घरेलू राजनीति और जनमानस पर प्रभाव
ये यात्राएँ जनता के बीच सरकार की “रक्षा समर्थक” छवि को गहराई से स्थापित करती हैं। इनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा होती हैं, जिससे प्रधानमंत्री एक ऐसे नेता के रूप में उभरते हैं जो अपने रक्षकों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामरिक संदेश
विदेशी पर्यवेक्षक भी इन आयोजनों पर पैनी नज़र रखते हैं। सियाचिन में दीवाली एक पड़ोसी को संकेत देती है, जबकि INS विक्रांत पर दीवाली पूरी दुनिया को — यह दिखाती है कि भारत के पास न केवल क्षमता है, बल्कि उसे प्रदर्शित करने का आत्मविश्वास भी है।
“मोदी मॉडल” की नागरिक-सैन्य संबंध परिभाषा
इस परंपरा ने भारत में नागरिक-सैन्य संबंधों पर नई चर्चा छेड़ी है। यह मॉडल पश्चिमी देशों की तरह अलगाव का नहीं, बल्कि दृश्यमान एकीकरण का है — जहाँ राजनीतिक नेतृत्व सेना के साथ कदमताल में दिखता है। इससे जवानों का मनोबल तो बढ़ता है, पर साथ ही यह राजनीतिक विश्लेषण का विषय भी बनता है कि राष्ट्र और सरकार की छवि कितनी जुड़ रही है।

आगे की राह: क्या यह परंपरा बनी रहेगी?
जैसे ही पीएम मोदी की “फोर्सेस के साथ दीवाली” परंपरा एक दशक पूर्ण करती है, यह भारत की राजनीतिक-सैन्य संस्कृति में गहराई से रच-बस गई है। सवाल यह उठता है — क्या यह व्यक्तिगत पहल है जो उनके कार्यकाल तक सीमित रहेगी, या भविष्य के प्रधानमंत्री भी इसे आगे बढ़ाएँगे?
लोकप्रियता और रणनीतिक लाभ को देखते हुए, संभावना यही है कि यह परंपरा भविष्य में भी किसी न किसी रूप में जारी रहेगी। इसने राष्ट्रीय नेतृत्व के त्योहार मनाने की परंपरा को ही नया अर्थ दे दिया है — जहाँ शक्ति और सुरक्षा का उत्सव एक साथ मनाया जाता है।
निष्कर्ष: सीमाओं पर रोशनी की किरण
INS विक्रांत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दीवाली केवल एक उत्सव नहीं थी — यह भावनात्मक, सामरिक और राजनीतिक तीनों स्तरों पर अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण था। यह नौसेना का मनोबल बढ़ाने का सच्चा प्रयास था, साथ ही भारत की आत्मनिर्भर रक्षा क्षमता का प्रतीकात्मक प्रदर्शन भी।
पिछले दस वर्षों में बनी यह परंपरा केवल एक “फोटो अवसर” नहीं, बल्कि राष्ट्र और उसके रक्षकों के बीच एक गहरे बंधन की कहानी है — जो शक्ति, स्वावलंबन और सुरक्षा के मार्ग को आलोकित करती है। INS विक्रांत के डेक पर जलाया गया दीपक केवल एक दीया नहीं, बल्कि भारत के सामरिक भविष्य की उज्ज्वल ज्योति है।
