परिचय: ‘मल्लाह के बेटे’ का अप्रत्याशित उदय
भारतीय राजनीति के ऊँचे दाँव वाले मंच पर, जहाँ वंश और विरासत अक्सर कहानी का रुख तय करते हैं, वहाँ मुकेश सहनी का उभार किसी फ़िल्मी कथा से कम नहीं लगता। एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी बॉलीवुड की बड़ी फ़िल्मों के लिए भव्य सेट बनाए — कल्पना की दुनिया में नेविगेट किया — अब बिहार की राजनीति के सबसे निर्णायक मंच पर आ खड़ा हुआ है।
महागठबंधन (Grand Alliance) द्वारा तेजस्वी यादव के साथ उन्हें उपमुख्यमंत्री चेहरे के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सहनी की यात्रा सिर्फ़ व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं है; यह आकांक्षी राजनीति का प्रतीक, पहचान आधारित लामबंदी की मिसाल, और एक ऐसी रणनीतिक चाल है जो बिहार की जटिल राजनीतिक गणित को बदल सकती है।
यह कहानी है विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के संस्थापक मुकेश सहनी की — एक ऐसे नेता की जिसने मल्लाह (निषाद) समुदाय और अन्य अति पिछड़ा वर्ग (EBC) के हितों को आवाज़ देने के लिए अपने बाहरीपन और सामाजिक इंजीनियरिंग की समझ को शक्ति में बदला। देवदास के चमकदार सेट से लेकर बिहार के धूल भरे चुनावी मैदान तक, यह लेख मुकेश सहनी के व्यक्तित्व, उनके तरीक़ों और उनकी असीम महत्वाकांक्षा की पड़ताल करता है।
Table of Contents
मुकेश सहनी कौन हैं? राजनेता का विश्लेषण
उनके राजनीतिक प्रभाव को समझने के लिए यह ज़रूरी है कि हम सिर्फ़ सुर्खियों से आगे बढ़कर उनकी बनाई बहुआयामी पहचान को देखें।
बॉलीवुड आर्ट डायरेक्टर: भव्यता की नींव
राजनीति में नाम बनने से पहले, मुकेश सहनी एक सफल व्यवसायी थे जिन्होंने बॉलीवुड में अपनी जगह बनाई। बिहार के दरभंगा ज़िले से ताल्लुक रखने वाले सहनी मुंबई गए और वहाँ सेट डिज़ाइन और प्रॉप्स सप्लाई का कारोबार शुरू किया।
उनकी सबसे बड़ी पहचान बनी संजय लीला भंसाली की फिल्म देवदास से, जो अपने शानदार सेट्स और कलात्मक भव्यता के लिए जानी जाती है। इस काम ने सहनी को भव्य छवियाँ गढ़ने की कला सिखाई — एक हुनर जो आगे चलकर उनके राजनीतिक अभियानों में बेहद कारगर साबित हुआ।
यह बॉलीवुड पृष्ठभूमि केवल एक दिलचस्प तथ्य नहीं है — इसने उनकी राजनीतिक सौंदर्यशास्त्र (aesthetics) को गहराई से प्रभावित किया। उनकी सभाएँ अक्सर एक दृश्य तमाशा होती हैं — शानदार मंच, तेज़ संगीत और नाटकीय प्रस्तुति के साथ। वह कहानी कहने और दृश्य प्रतीकवाद की ताक़त को समझते हैं, और खुद को एक सामान्य राजनेता नहीं, बल्कि जनता के बीच से निकले सफल व्यक्ति के रूप में पेश करते हैं।
पहचान के योद्धा: विकासशील इंसान पार्टी (VIP) की स्थापना
सहनी की राजनीति में एंट्री किसी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से नहीं, बल्कि सामुदायिक उपेक्षा की भावना से हुई। मल्लाह (नाविक, मछुआरे) समुदाय, जो निषाद और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) में आता है, लंबे समय से बिहार की राजनीति में हाशिये पर रहा है।
उनकी आबादी पर्याप्त होने के बावजूद, उन्हें कभी एकजुट राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिला। इस खालीपन को पहचानते हुए, सहनी ने 2018 में विकासशील इंसान पार्टी (VIP) की स्थापना की।
पार्टी का नाम ही अपने आप में एक संदेश था — ‘विकासशील इंसान’, यानी आम आदमी के विकास की पार्टी। उन्होंने खुद को “Son of Mallah” (मल्लाह का बेटा) कहकर पेश किया — एक ऐसा शीर्षक जो विनम्र भी है और चुनौतीपूर्ण भी, जो सीधे उनकी समुदाय की अस्मिता को छूता है। यह सिर्फ़ राजनीति नहीं थी, बल्कि एक आंदोलन था — एक सोए हुए समुदाय को जगाने का।
जातीय गणित: क्यों मल्लाह समुदाय है राजनीतिक ‘गोल्डमाइन’
बिहार की राजनीति मूलतः जातीय समीकरणों का खेल है। कोई भी दल तब तक जीत नहीं सकता जब तक वह मजबूत सामाजिक गठबंधन न बनाए। ऐसे में महागठबंधन द्वारा मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री चेहरे के रूप में सामने लाना एक सटीक रणनीतिक कदम है।
- संख्या बल: निषाद/मल्लाह समुदाय और अन्य सम्बद्ध EBC समूह मिलकर बिहार की आबादी का लगभग 5% से 8% हिस्सा बनाते हैं। बिहार जैसे राज्य में, जहाँ मामूली अंतर से परिणाम तय होता है, यह वोट बैंक निर्णायक है।
- EBC फैक्टर: अति पिछड़े वर्ग बिहार की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा हैं। पारंपरिक रूप से ये बिखरे हुए वोटर रहे हैं, लेकिन अगर कोई नेता इन्हें एक मंच पर ला दे तो वह बड़ा शक्ति केंद्र बन सकता है। सहनी का VIP उसी दिशा में काम कर रहा है।
- भौगोलिक प्रभाव: मल्लाह समुदाय उत्तर बिहार के कई जिलों में मज़बूत उपस्थिति रखता है, खासकर सीमांचल और मिथिला क्षेत्रों में। इन इलाकों में कुछ हज़ार वोट भी नतीजा बदल सकते हैं। महागठबंधन के लिए सहनी का साथ इन बेल्ट्स में गहरी पैठ बनाने का अवसर है।

महागठबंधन की चाल: तेजस्वी और सहनी — नया चेहरा
विपक्षी गठबंधन — जिसमें राजद, कांग्रेस और वामदल शामिल हैं — ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री और मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री चेहरा बनाकर एक रणनीतिक दांव खेला है।
- NDA की कहानी का जवाब: सत्तारूढ़ NDA (नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी) का आधार कुछ EBC वर्गों में मज़बूत है। सहनी को आगे रखकर महागठबंधन ने इस आधार को सीधे चुनौती दी है।
- पूरक सामाजिक समीकरण: तेजस्वी यादव का आधार यादव-मुस्लिम वोट है, जबकि सहनी EBC/मल्लाह वोट लाते हैं। दोनों मिलकर एक व्यापक सामाजिक गठबंधन बनाते हैं, जो NDA के जातीय समीकरणों को संतुलित कर सकता है।
- युवा और आकांक्षी छवि: दोनों युवा नेता हैं — तेजस्वी वंशज हैं जबकि सहनी ‘सेल्फ-मेड’ व्यक्ति हैं। यह जोड़ी बदलाव, महत्वाकांक्षा और ‘नए बिहार’ की छवि को मजबूत करती है।
चुनौतियाँ और विवाद: सहनी की राह कठिन क्यों है
रणनीतिक सफलता के बावजूद, मुकेश सहनी की यात्रा में कई बाधाएँ हैं।
- अपनी क्षमता साबित करना: 2020 के चुनावों में पार्टी ने चार सीटें जीतकर उम्मीदें जगाईं, लेकिन अब चुनौती है इस सफलता को दोहराने और विस्तार करने की।
- गठबंधन की जटिलताएँ: छोटे दल के रूप में VIP को सीट बंटवारे में संघर्ष करना होगा। यह भी जोखिम रहेगा कि उसकी पहचान RJD जैसे बड़े दल के बीच खो न जाए।
- BJP की रणनीति: BJP भी सामाजिक इंजीनियरिंग में माहिर है। वह EBC वोट बैंक को बिना लड़े नहीं छोड़ेगी और सहनी की छवि को कमजोर करने का प्रयास करेगी।
- पहचान से परे विकास: अंततः सहनी को यह दिखाना होगा कि वे सिर्फ़ पहचान की राजनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि नौकरियों, शिक्षा और बुनियादी ढाँचे पर ठोस नीतियाँ भी रख सकते हैं।
बिहार की राजनीति पर सहनी का प्रभाव
मुकेश सहनी का उपमुख्यमंत्री चेहरे के रूप में उभरना बिहार की राजनीति में संरचनात्मक बदलाव का संकेत है।
- EBC राजनीति का औपचारिककरण: अब EBC समुदाय सिर्फ़ वोट बैंक नहीं रह गया, बल्कि नेतृत्व में उनकी हिस्सेदारी तय हो रही है।
- सूक्ष्म जातीय पार्टियों का उदय: VIP जैसी पार्टियों की सफलता अन्य छोटे समुदायों को भी प्रेरित कर रही है कि वे अपनी पहचान के बल पर राजनीतिक सौदेबाज़ी करें।
- नए प्रकार का राजनेता: सहनी राजनीति के उस नए मॉडल का प्रतिनिधित्व करते हैं जहाँ व्यक्ति वंश से नहीं, बल्कि व्यवसायिक समझ, मीडिया रणनीति और सोशल मीडिया की पकड़ से अपनी पहचान बनाता है।
निष्कर्ष: केवल उपमुख्यमंत्री चेहरा नहीं, एक प्रतीक
मुकेश सहनी की कहानी भारतीय लोकतंत्र के विकास की एक दिलचस्प दास्तान है। यह दिखाती है कि आज की राजनीति में सत्ता तक पहुँचने के रास्ते विविध हैं — वे किसी फ़िल्म सेट से भी शुरू हो सकते हैं, किसी छोटे व्यवसाय से या किसी समुदाय की अस्मिता से।
उनका उपमुख्यमंत्री चेहरा बनना यह साबित करता है कि जाति, गठबंधन की रणनीति और आकांक्षी नेतृत्व आज की राजनीति के निर्णायक तत्व हैं।
भविष्य में वे इस अवसर को स्थायी शक्ति में बदल पाएँगे या नहीं, यह तो समय बताएगा।
पर एक बात तय है — “मल्लाह का बेटा” मुकेश सहनी अब बिहार की राजनीति की पटकथा बदल चुके हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि अब राज्य के सबसे पिछड़े वर्ग सिर्फ़ दर्शक नहीं, बल्कि मुख्य किरदार बन चुके हैं।