दीवाली लक्ष्मी पूजा 2025: समृद्धि और दिव्य कृपा का परम मार्गदर्शन
हवा में उत्साह की गूंज है, रातें अनगिनत दीयों की रोशनी से जगमगा रही हैं, और हर घर में उल्लास का संगीत गूंज रहा है। दीवाली — प्रकाश का पर्व — केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मा को आलोकित करने वाला एक आध्यात्मिक अनुभव है। इस भव्य पर्व के केंद्र में है — लक्ष्मी पूजा, जो समर्पित है धन, समृद्धि और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी को।
लाखों लोगों के लिए लक्ष्मी पूजा श्रद्धा और सही विधि-विधान से करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, ताकि देवी लक्ष्मी की कृपा उनके घरों और जीवन में स्थायी रूप से बनी रहे। लेकिन अलग-अलग मुहूर्तों और जटिल विधियों के कारण कई बार यह भ्रमित कर सकता है।
यह संपूर्ण मार्गदर्शिका आपको 2025 की दीवाली लक्ष्मी पूजा के हर पहलू की जानकारी देगी — शुभ मुहूर्त, चरण-दर-चरण पूजा विधि, आवश्यक सामग्री सूची, और शक्तिशाली मंत्र व आरती सहित।
Table of Contents
दीवाली पर लक्ष्मी पूजा का गहरा महत्व
सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि लक्ष्मी पूजा दीवाली से इतनी जुड़ी हुई क्यों है।
दीवाली भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाई जाती है। अयोध्यावासियों ने तेल के दीप जलाकर उनका स्वागत किया, जो प्रकाश के अंधकार पर और अच्छे के बुरे पर विजय का प्रतीक था। समय के साथ, यह दिन देवी लक्ष्मी की पूजा से भी जुड़ गया।
मान्यता है कि दीवाली की अमावस्या की रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर उतरती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। वे केवल भौतिक धन की देवी नहीं हैं, बल्कि आध्यात्मिक समृद्धि, बुद्धि, साहस और उर्वरता की भी प्रतीक हैं। पूजा के माध्यम से हम अपने घरों और हृदयों को पवित्र कर उन्हें उनके दिव्य आशीर्वाद के लिए तैयार करते हैं।
दीयों की रोशनी देवी लक्ष्मी को हमारे द्वार तक मार्ग दिखाती है, और पूजा उनके आगमन का स्वागत है।

दीवाली 2025: लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त
हिंदू धर्म में समय (मुहूर्त) अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। सही समय पर पूजा करने से उसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, 2025 के लक्ष्मी पूजा के प्रमुख समय इस प्रकार हैं:
- दीवाली तिथि: शनिवार, 18 अक्टूबर 2025
- अमावस्या तिथि प्रारंभ: 18 अक्टूबर, सुबह 03:05 बजे
- अमावस्या तिथि समाप्त: 19 अक्टूबर, रात 01:35 बजे
दीवाली की पूजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण समय प्रदोष काल है — अर्थात सूर्यास्त के बाद का समय।
मुख्य लक्ष्मी पूजा मुहूर्त:
- समय: शाम 06:39 बजे से रात 08:15 बजे तक
- अवधि: 1 घंटा 36 मिनट
यह समय महनिशिता काल में आता है, जो देवी लक्ष्मी की उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
वैकल्पिक मुहूर्त (स्थिर लग्न):
- समय: शाम 06:39 बजे से 08:39 बजे तक
- इस समय में भी पूजा करना अत्यंत शुभ और स्थायी समृद्धि देने वाला माना गया है।
टिप: मुख्य पूजा के लिए विजय लग्न (02:44 PM – 04:20 PM) और रोग लग्न (05:32 PM – 07:08 PM) से बचना चाहिए, क्योंकि इन्हें अशुभ समय माना गया है।

लक्ष्मी पूजा सामग्री सूची (Puja Samagri List)
सही तैयारी पूजा की सफलता का आधा हिस्सा है। पूजा शुरू होने से पहले सभी सामग्री एकत्र कर लेने से एकाग्रता बनी रहती है और पूजा में कोई विघ्न नहीं आता।
देव प्रतिमाएँ:
- देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर
- (वैकल्पिक) देवी सरस्वती की तस्वीर
- भगवान कुबेर की प्रतिमा या कलश
आधार सामग्री:
- लाल या पीले रंग का साफ नया कपड़ा
- देवी के लिए नई चुन्नी (लाल या गुलाबी)
भोग (नैवेद्य):
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और चीनी का मिश्रण)
- तांबे या चांदी के लोटे में जल
- घर का बना मीठा (खीर, हलवा, पेड़ा आदि)
- मौसमी फल (केला, सेब, अनार)
- सूखे मेवे (बादाम, काजू, अखरोट)
- बताशा, नारियल, सुपारी
पूजा आवश्यक वस्तुएं:
- गंगाजल
- रोली, चंदन, हल्दी
- अक्षत (हल्दी मिश्रित चावल)
- ताजे फूल (विशेष रूप से गेंदे और कमल)
- अगरबत्ती, धूप, दीपक (घी या तेल वाला)
- कपूर
अन्य वस्तुएं:
- नया लेखा बही, पेन, सिक्के या मुद्रा नोट
- घंटी, शंख

लक्ष्मी पूजा विधि (Step-by-Step Vidhi)
चरण 1: तैयारी और संकल्प
स्नान कर स्वच्छ व पारंपरिक वस्त्र पहनें। चौकी पर लाल/पीला कपड़ा बिछाएं और मूर्तियाँ स्थापित करें। उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख रखें और संकल्प लें — “मैं (अपना नाम और गोत्र) आज देवी लक्ष्मी की पूजा करके उनके आशीर्वाद की कामना करता/करती हूँ।”
चरण 2: कलश स्थापना और गणेश पूजा
कलश में जल भरकर आम के पत्ते रखें और ऊपर नारियल रखें। पहले भगवान गणेश की पूजा करें। उन्हें फूल, चंदन, रोली चढ़ाएं और उनका मंत्र जपें।
चरण 3: देवी-देवताओं का आवाहन
अब देवी लक्ष्मी, भगवान कुबेर और अन्य देवताओं का आवाहन करें:
“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नमः”
चरण 4: षोडशोपचार पूजा (16 चरणों की सेवा)
- आसन
- पाद्य
- अर्घ्य
- आचमन
- स्नान
- वस्त्र
- यज्ञोपवीत
- गंध
- अक्षत
- पुष्प
- धूप
- दीप
- नैवेद्य
- ताम्बूल
- दक्षिणा
- प्रदक्षिणा और प्रणाम
चरण 5: लक्ष्मी कथा और मंत्र जप
लक्ष्मी कथा सुनें या पढ़ें। फिर “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का 108 बार जप करें।
चरण 6: कुबेर पूजा और लेखा बही अनुष्ठान
नई बही, पेन, और मुद्रा देवी के सामने रखें। “शुभ” और “लाभ” लिखें। यह नए वित्तीय वर्ष की शुभ शुरुआत मानी जाती है।
चरण 7: आरती
कपूर जलाकर देवी लक्ष्मी की आरती करें और परिवार सहित गाएं।

लक्ष्मी माता की आरती: “ॐ जय लक्ष्मी माता”
(हिंदी)
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
… (पूर्ण आरती पूर्ववत)

अनुष्ठानों से परे: दीवाली का गहरा संदेश
दीवाली की सच्ची भावना केवल पूजा तक सीमित नहीं — यह आत्म-जागृति का पर्व है।
- दीये जलाना: अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाना।
- लक्ष्मी की पूजा: केवल धन नहीं, बल्कि दया, ईमानदारी और पवित्रता का विकास करना।
- नई बही: एक नई शुरुआत — बीते वित्तीय और मानसिक दोषों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने का प्रतीक।
इस दीवाली, हर फूल को एक अच्छे कर्म का प्रतीक बनाएं, हर मंत्र को शुद्ध इरादे की ध्वनि बनाएं, और हर दीपक को किसी और के जीवन में उजाला लाने का व्रत बनाएं।
आपको और आपके परिवार को शुभ दीपावली एवं माँ लक्ष्मी का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हो! 🌼✨
