भाजपा की तमिलनाडु रणनीति: विजय की टीवीके के प्रति रणनीतिक पहुंच का विश्लेषण
तमिलनाडु का राजनीतिक परिदृश्य अत्यंत जटिल और प्रतिस्पर्धात्मक है, जहाँ दशकों से दो द्रविड़ दलों — डीएमके और एआईएडीएमके — का दबदबा रहा है। राष्ट्रीय दलों, विशेषकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए, इस राज्य में अपनी पकड़ बनाना हमेशा से एक चुनौती रहा है।
लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों ने इस समीकरण को बदल दिया है। भाजपा ने अभिनेता-नेता विजय की तमिळगा वेत्रि कझगम (TVK) पार्टी के प्रति रणनीतिक रूप से गर्मजोशी दिखाते हुए एक नया, दिलचस्प राजनीतिक दांव चला है।
यह कदम केवल एक सामान्य चुनावी गठबंधन नहीं है — बल्कि यह एक बहु-स्तरीय राजनीतिक रणनीति है। इसमें एक लोकप्रिय नए दल की अस्थिर स्थिति का लाभ उठाना, स्टार शक्ति को साधना, और आखिरकार तमिलनाडु की राजनीति का “कोड” तोड़ने की कोशिश शामिल है।
यह ब्लॉग भाजपा की टीवीके के साथ इस रणनीतिक नज़दीकी का विश्लेषण करेगा — किन कारणों से यह गठबंधन उभरा, इसके सामने कौन-सी चुनौतियाँ हैं, और यह तमिलनाडु की राजनीति के भविष्य को किस प्रकार प्रभावित कर सकता है।
Table of Contents
1. प्रमुख खिलाड़ी: विजय, टीवीके और भाजपा की तमिलनाडु यात्रा
इस संभावित गठबंधन के महत्व को समझने के लिए पहले इसमें शामिल प्रमुख पात्रों को समझना ज़रूरी है।
विजय और तमिळगा वेत्रि कझगम (TVK) का उदय:
विजय, तमिल सिनेमा के सबसे बड़े सितारों में से एक, लंबे समय से राजनीति में औपचारिक रूप से कदम रखने की अटकलों के केंद्र में थे। 2025 में उन्होंने आधिकारिक रूप से TVK पार्टी की स्थापना की।
उनकी पार्टी का शुभारंभ जबरदस्त उत्साह के साथ हुआ — उनके विशाल प्रशंसक समूह ने शीघ्र ही एक मजबूत राजनीतिक संगठन का रूप ले लिया। टीवीके ने खुद को पारंपरिक द्रविड़ दलों के विकल्प के रूप में पेश किया, जो सामाजिक न्याय, भ्रष्टाचार विरोध और तमिल गौरव जैसे मुद्दों पर केंद्रित है।
अन्य फिल्मी नेताओं की तरह केवल लोकप्रियता पर नहीं, बल्कि एक संगठित ढांचे और स्पष्ट राजनीतिक मंशा के साथ टीवीके ने राजनीतिक मैदान में प्रवेश किया।
भाजपा की तमिलनाडु में लंबी और कठिन यात्रा:
पैन-इंडिया उपस्थिति के बावजूद, भाजपा तमिलनाडु में कभी मजबूत आधार नहीं बना पाई। राज्य की द्रविड़ पहचान और क्षेत्रीय गौरव की भावना अक्सर भाजपा की राष्ट्रीयवादी विचारधारा से मेल नहीं खाती।
एआईएडीएमके के साथ पिछले गठबंधन सीमित सफलता ही दिला सके। अब भाजपा एक ऐसे स्थानीय सहयोगी की तलाश में थी जो उसे जमीनी स्तर पर पहुंच दे सके और साथ ही “तमिल चेहरा” भी प्रदान करे जिससे जनता जुड़ सके।
लक्ष्य था — डीएमके-एआईएडीएमके की द्विध्रुवीय राजनीति को तोड़कर एनडीए के तहत तीसरा विकल्प बनाना।

2. संकट का क्षण: कल्लाकुरिची भगदड़ और उसका राजनीतिक असर
राजनीति में संकटों से अवसर निकालना एक कला है — और कल्लाकुरिची भगदड़ ने सभी दलों के लिए एक निर्णायक क्षण प्रदान किया।
जुलाई 2024 में टीवीके की एक जनसभा में भगदड़ मच गई, जिसमें कई लोगों की मृत्यु हो गई और अनेक घायल हुए। यह घटना पूरे तमिलनाडु को झकझोर गई और पार्टी प्रमुख विजय को भारी दबाव में ला दिया।
शासन कर रही डीएमके और अन्य विपक्षी दलों ने टीवीके की संगठनात्मक क्षमता और भीड़ प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठाए।
टीवीके के लिए परिणाम:
एक नई पार्टी, जिसने खुद को सक्षम और जनता-सेवा केंद्रित बताया था, के लिए यह एक बड़ा झटका था। उसे सामना करना पड़ा —
- प्रशासनिक जांच: भीड़ प्रबंधन और अनुमति प्रक्रियाओं में चूक की जांच शुरू हुई।
- मीडिया की आलोचना: कुछ मीडिया संस्थानों ने कड़ी निंदा की।
- राजनीतिक अलगाव: स्थापित दलों ने टीवीके को अनुभवहीन और गैर-जिम्मेदार बताया।
इसी कमजोरी के दौर में भाजपा ने अवसर देखा — आलोचक के रूप में नहीं, बल्कि संभावित सहयोगी के रूप में।

3. भाजपा का सुनियोजित कदम: अवसर को पहचानना
भाजपा नेतृत्व, जो अपनी राजनीतिक सूझबूझ के लिए प्रसिद्ध है, ने कल्लाकुरिची की इस त्रासदी को टीवीके के लिए संकट ही नहीं, बल्कि अपने लिए अवसर के रूप में पहचाना।
उनकी रणनीति कई स्तरों पर काम कर रही थी —
संकट में सहयोग: भाजपा ने आलोचना में शामिल होने के बजाय विजय और टीवीके के प्रति निजी और बाद में सार्वजनिक सहानुभूति व्यक्त की। इससे यह संदेश गया कि भाजपा संकट के समय विश्वसनीय साथी बन सकती है।
“गैंगिंग अप” नैरेटिव का उपयोग: भाजपा ने डीएमके और अन्य दलों की आलोचनाओं को “स्थापित दलों द्वारा नए राजनीतिक प्रवेशी पर हमला” के रूप में पेश किया। यह संदेश विजय समर्थकों और एंटी-इंकम्बेंसी भावना से जुड़ी जनता में गूंजा।
संगठनात्मक समर्थन का भरोसा: भाजपा ने टीवीके को यह संकेत दिया कि उसके पास बेहतर प्रबंधन, संसाधन और संकट से निपटने का अनुभव है — जो टीवीके की कमजोरी की भरपाई कर सकता है।
रिपोर्टों के अनुसार, इन प्रयासों के परिणामस्वरूप टीवीके ने एनडीए के साथ राजनीतिक समझौते की संभावनाओं को लेकर सकारात्मक संकेत दिया — और यह वही “ब्रेकथ्रू” था जिसका भाजपा इंतजार कर रही थी।
4. गठबंधन की गतिशीलता: कौन क्या लेकर आया है?
संभावित भाजपा-टीवीके गठबंधन एक क्लासिक “राजनीतिक सहजीविता” (symbiosis) का उदाहरण है, जहाँ दोनों दल एक-दूसरे की महत्वपूर्ण आवश्यकता पूरी करते हैं।
टीवीके भाजपा को क्या देती है:
- जनप्रियता और स्टार पावर: विजय का युवाओं में जबरदस्त प्रभाव है — यही वह “X-फैक्टर” है जो भाजपा के पास अब तक नहीं था।
- एक विश्वसनीय तमिल चेहरा: विजय की तमिल पहचान भाजपा को “बाहरी पार्टी” की छवि से बाहर निकलने में मदद कर सकती है।
- जमीनी कार्यबल: “विजय मककल अयक्कम” पहले से ही एक सशक्त जनसंगठन है, जो भाजपा के अभियान को सीधा बूस्ट दे सकता है।
- द्रविड़ीय द्वंद्व का टूटना: टीवीके डीएमके और एआईएडीएमके दोनों के वोट शेयर में सेंध लगा सकती है, जिससे एनडीए के लिए कुछ सीटों पर जीत की संभावना बनेगी।
भाजपा टीवीके को क्या देती है:
- वित्तीय और संगठनात्मक शक्ति: भाजपा के पास संसाधनों और संगठनात्मक क्षमता की कोई कमी नहीं है — यह टीवीके के लिए चुनावी तैयारी में अमूल्य है।
- राष्ट्रीय स्तर का प्रभाव: केंद्र की सत्ताधारी पार्टी के साथ गठबंधन “दिल्ली से सीधा संपर्क” का संदेश देता है।
- राजनीतिक अनुभव और वैधता: भगदड़ के बाद भाजपा जैसी अनुभवी पार्टी का साथ टीवीके की विश्वसनीयता बहाल करने में मदद कर सकता है।
- स्पष्ट एंटी-डीएमके मंच: भाजपा टीवीके को एक ठोस वैचारिक स्थिति प्रदान करती है जिससे वह खुद को राजनीतिक रूप से परिभाषित कर सके।

5. चुनौतियाँ और अड़चनें: वैचारिक मतभेद और जन धारणा
हालाँकि यह गठबंधन रणनीतिक रूप से तर्कसंगत लगता है, लेकिन इसमें कई गंभीर चुनौतियाँ हैं।
वैचारिक खाई:
टीवीके का राजनीतिक दृष्टिकोण सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है — जो द्रविड़ राजनीति की पहचान है। दूसरी ओर, भाजपा की विचारधारा हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से जुड़ी है, जिसे तमिलनाडु में अक्सर संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।
“अवसरवाद” का आरोप:
विपक्ष पहले ही इसे “सुविधा का गठबंधन” करार दे रहा है। डीएमके और एआईएडीएमके दोनों इसे “तमिल हितों से समझौता” बताकर टीवीके पर हमला करेंगे।
मुख्य समर्थक वर्ग का प्रबंधन:
विजय का प्रशंसक समूह विविध है — जाति, वर्ग और राजनीतिक विचारधाराओं से परे। इसमें एक हिस्सा भाजपा-विरोधी भी है। टीवीके को इस अंतर्विरोध को सावधानी से संभालना होगा।
एआईएडीएमके दुविधा:
भाजपा पहले एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में थी। टीवीके के साथ नया गठबंधन उस रिश्ते को तोड़ सकता है, जिससे एंटी-डीएमके वोट बिखर सकते हैं — जो अंततः डीएमके के पक्ष में जा सकता है।
6. 2024 लोकसभा चुनावों पर संभावित प्रभाव
भाजपा-टीवीके गठबंधन के आने से तमिलनाडु की चुनावी राजनीति का पूरा समीकरण बदल सकता है।
तीन-तरफा मुकाबला:
यह गठबंधन चुनाव को डीएमके बनाम एआईएडीएमके/एनडीए के पारंपरिक मुकाबले से हटाकर तीन-तरफा संघर्ष में बदल देगा।
महत्वपूर्ण सीटों पर असर:
अगर यह गठबंधन डीएमके और एआईएडीएमके दोनों के असंतुष्ट मतदाताओं को आकर्षित कर सका, तो यह कई करीबी सीटों का परिणाम बदल सकता है।
भविष्य की नींव:
भले ही गठबंधन कुछ ही सीटें जीते, यह भाजपा के लिए “नैतिक विजय” होगी — यह साबित करने के लिए कि अब वह तमिलनाडु में भी पैठ बना सकती है।
वहीं टीवीके के लिए यह चुनावी राजनीति में सफल प्रवेश होगा, जो आगे आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए आधार बनेगा।
7. निष्कर्ष: व्यावहारिक गठबंधन या क्षणिक समीकरण?

भाजपा द्वारा विजय की टीवीके के साथ बढ़ाई गई यह नज़दीकी राजनीतिक यथार्थवाद (realpolitik) का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह भाजपा की लचीलापन नीति और विस्तार की सतत खोज को दर्शाती है।
विजय के लिए यह गठबंधन एक कठिन समय में सुरक्षा कवच है और उनके राजनीतिक सपनों के लिए लॉन्चपैड भी।
हालाँकि, यह एक जोखिम भरा दांव है। इसकी सफलता स्टार पावर या संगठनात्मक तालमेल पर नहीं, बल्कि तमिलनाडु की विशिष्ट राजनीतिक संस्कृति को समझने और उसके अनुरूप खुद को ढालने की क्षमता पर निर्भर करेगी।
क्या यह गठबंधन दीर्घकालिक साझेदारी बनेगा जो तमिलनाडु की राजनीति को पुनर्परिभाषित करेगा — या केवल चुनाव-विशेष अस्थायी समीकरण रहेगा — यह 2024 के परिणाम और दोनों दलों की राजनीतिक कुशलता पर निर्भर करेगा।
एक बात निश्चित है: इस नए समीकरण के आने से तमिलनाडु की राजनीति पहले से कहीं अधिक अनिश्चित, रोचक और गतिशील हो गई है।