मोक्षदा एकादशी व्रत कथा 2025: पूजा विधि, महत्व और मोक्ष प्रदान करने वाली इस एकादशी की पावन कथा
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह दिन अत्यंत पावन और सौभाग्यशाली माना जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने और कथा श्रवण करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है और उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है। इस लेख में हम आपको मोक्षदा एकादशी 2025 की तिथि, पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और संपूर्ण व्रत कथा के बारे में विस्तार से बताएंगे।

मोक्षदा एकादशी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
इस वर्ष मोक्षदा एकादशी 30 नवंबर 2025, रविवार को मनाई जाएगी।
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 29 नवंबर 2025, शनिवार रात 08:12 बजे से
- एकादशी तिथि समाप्त: 30 नवंबर 2025, रविवार रात 09:31 बजे तक
- पारण (व्रत तोड़ने) का समय: 01 दिसंबर, सोमवार सुबह 06:53 बजे से दोपहर 12:45 बजे तक
- हरिवासर (विष्णु जी का दिन): 30 नवंबर, रविवार
मोक्षदा एकादशी व्रत का महत्व और फल
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। मोक्षदा एकादशी का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह मोक्ष (मुक्ति) प्रदान करने वाली मानी जाती है। इस व्रत के प्रभाव से:
- पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और वंशजों को पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
- भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
- श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ इस दिन विशेष फलदायी होता है, जो जीवन के हर संकट से मार्गदर्शन प्रदान करती है।

मोक्षदा एकादशी व्रत और पूजा विधि
व्रत का संकल्प लेकर नियम पूर्वक इस पूजन विधि का पालन करें:
- स्नान और संकल्प: प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। साफ वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- व्रत नियम: दशमी की रात से ही ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन अन्न, अनाज, चावल आदि का सेवन वर्जित है। फलाहार या दूध-फल से ही दिन व्यतीत करें।
- पूजा सामग्री: तुलसी दल, फूल, फल, धूप, दीप, चंदन, विष्णु जी को प्रिय भोग (मिष्ठान्न) तैयार रखें।
- विशेष पूजन: घर के मंदिर या पास के किसी विष्णु मंदिर में जाकर भगवान की मूर्ति या शालिग्राम का जल, पंचामृत से अभिषेक करें। तुलसी दल अर्पित करें और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- कथा श्रवण: शाम के समय परिवार के साथ बैठकर मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा सुनें या पढ़ें। रात्रि जागरण (जागरण) कर भजन-कीर्तन करना शुभ माना जाता है।
- दान-पुण्य: इस दान का विशेष महत्व है। गरीबों को अन्न, वस्त्र या दक्षिणा दान दें।
- पारण: द्वादशी तिथि के शुभ मुहूर्त में पारण (व्रत तोड़ना) करें। सर्वप्रथम भगवान विष्णु को भोग लगाएं, उसके बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करें।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में गुंजन नाम का एक सुंदर नगर था। वहां राजा वैखानस शासन करते थे, जो बहुत ही धार्मिक और प्रजा का ध्यान रखने वाले थे। एक रात राजा ने स्वप्न देखा कि उनके पिता नरक में यातनाएं भोग रहे हैं। यह देखकर राजा बहुत दुखी हुए और प्रातः होते ही अपने मंत्रियों व राजपुरोहित को यह स्वप्न सुनाया।
राजपुरोहित ने कहा, “हे राजन! इस समस्या का समाधान जानने के लिए हमें वन में तपस्या कर रहे महर्षि पर्वत के पास जाना चाहिए।” राजा ऋषि के आश्रम पहुंचे और उन्हें सारी बात कह सुनाई।
महर्षि पर्वत गहन ध्यान में बैठे और राजा के पिता की दशा जानकर बोले, “हे राजन! आपके पिता ने अपने जीवन में एक बार अनजाने में एक ब्राह्मण का घोर अपराध किया था। उसी पाप के कारण उन्हें नरक की प्राप्ति हुई है।”
राजा ने हाथ जोड़कर पूछा, “मुनिवर! कृपया कोई उपाय बताएं जिससे मेरे पिता को इस यातना से मुक्ति मिल सके।”
ऋषि बोले, “मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे ‘मोक्षदा एकादशी’ कहते हैं, इसका व्रत करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। आप इस पावन व्रत का पालन करें और उसका फल अपने पिता को समर्पित कर दें।”
राजा ने ऋषि के कथनानुसार पूर्ण विधि-विधान से मोक्षदा एकादशी का व्रत रखा। व्रत के पुण्य प्रभाव से राजा के पिता सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक को प्राप्त हुए। तभी से इस एकादशी का नाम मोक्षदा एकादशी पड़ा, जो मोक्ष प्रदान करती है।
गीता जयंती का महत्व और गीता के उपदेश
जैसा कि पहले बताया, मोक्षदा एकादशी के दिन ही कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। इसलिए इस दिन गीता पाठ करना, उसके श्लोकों पर चिंतन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। गीता मानव जीवन के लिए एक सार्वभौमिक जीवन दर्शन है, जो मोह, संकट और भ्रम की स्थिति में मार्गदर्शन प्रदान करती है। इस दिन गीता के इन श्लोकों का पाठ विशेष रूप से किया जा सकता है:
- कर्मण्येवाधिकारस्ते… (अपना कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है)
- यदा यदा हि धर्मस्य… (जब-जब धर्म की हानि होती है…)
- वसुदेव कुटुम्बकम… (पूरा विश्व एक परिवार है)
निष्कर्ष
मोक्षदा एकादशी वह पावन अवसर है जो हमें भगवान विष्णु की कृपा पाने, पितरों को मुक्ति दिलाने और गीता के अमृत ज्ञान से स्वयं को अभिसिंचित करने का मौका देती है। यह दिन हमें सांसारिक बंधनों से ऊपर उठकर आत्म-कल्याण के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इस वर्ष नवंबर में आने वाली इस एकादशी पर पूर्ण श्रद्धा के साथ व्रत-पूजन करें और जीवन में आध्यात्मिक शांति व सफलता प्राप्त करें।