India’s Defence Boost: A Deep Dive into the Rs 79,000 Crore Military

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भारत की रक्षा शक्ति में उछाल: 79,000 करोड़ रुपये की सैन्य आधुनिकीकरण योजना का गहन विश्लेषण

रणनीतिक महत्व का एक ऐतिहासिक क्षण

राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य तत्परता को सशक्त करने की दिशा में भारत सरकार ने हाल के वर्षों के सबसे बड़े रक्षा अधिग्रहण प्रस्तावों में से एक को मंज़ूरी दी है। लगभग 79,000 करोड़ रुपये (लगभग 9.5 अरब डॉलर) की भारी-भरकम वित्तीय मंज़ूरी भारत की सैन्य आधुनिकीकरण यात्रा में एक निर्णायक क्षण है। यह केवल उपकरणों की नियमित खरीद नहीं है, बल्कि 21वीं सदी की जटिल सुरक्षा चुनौतियों के लिए राष्ट्र की रक्षा क्षमताओं को पुनः परिभाषित करने का एक रणनीतिक निवेश है।

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भारत की रक्षा शक्ति में उछाल: 79,000 करोड़ रुपये की सैन्य आधुनिकीकरण योजना का गहन विश्लेषणरणनीतिक महत्व का एक ऐतिहासिक क्षणTable of Contents79,000 करोड़ रुपये की रक्षा खरीद योजना का विवरण1. आसमान पर प्रभुत्व: लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) Mk1Aतेजस Mk1A क्या है?रणनीतिक महत्व2. बख्तरबंद ताकत: भविष्य के लिए तैयार अर्जुन MBT Mk-1Aअर्जुन टैंक का विकासरणनीतिक महत्व3. नौसैनिक शक्ति: नई पीढ़ी के कोरवेट और पनडुब्बियाँरणनीतिक महत्व4. जमीनी युद्ध लॉजिस्टिक्स: टॉड गन सिस्टम्स और मोबाइल ECMरणनीतिक महत्व‘मेक इन इंडिया’ की रीढ़: रक्षा खरीद में नीतिगत परिवर्तनस्वदेशी खरीद के सकारात्मक प्रभाव:रणनीतिक आवश्यकता: यह निवेश अभी क्यों आवश्यक था?आगे की राह: चुनौतियाँ और अवसरनिष्कर्ष: आत्मनिर्भर और सुरक्षित भारत की ओर

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यह ब्लॉग इस ऐतिहासिक निर्णय का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेगा। हम वायु, समुद्र और स्थल — तीनों स्तरों पर अधिग्रहित किए जा रहे प्रमुख प्लेटफॉर्मों की समीक्षा करेंगे और इस कदम के रणनीतिक प्रभावों को समझेंगे। साथ ही, हम उस नीतिगत बदलाव को भी जानेंगे जो इस अधिग्रहण की नींव है — अर्थात् ‘मेक इन इंडिया’ पहल का सशक्त कार्यान्वयन, जो भारत को एक स्वदेशी रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने के प्रयासों का प्रतीक है।

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79,000 करोड़ रुपये की रक्षा खरीद योजना का विवरण

डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल (DAC) — जो रक्षा खरीद का सर्वोच्च निर्णयकारी निकाय है और जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करते हैं — ने भारतीय सशस्त्र बलों की संचालनात्मक कमी को दूर करने के लिए कई प्रमुख प्रस्तावों को मंज़ूरी दी है।

हालांकि इस स्वीकृति का पैमाना प्रभावशाली है, लेकिन इसकी संरचना और भी अधिक महत्वपूर्ण है — कुल राशि का 98% हिस्सा भारतीय कंपनियों से खरीद के लिए निर्धारित किया गया है।

यह आवंटन सरकार की इस प्रतिबद्धता का स्पष्ट संकेत है कि वह विदेशी हथियारों पर निर्भरता कम करके एक मजबूत घरेलू रक्षा उद्योग तंत्र विकसित करने की दिशा में अग्रसर है।


1. आसमान पर प्रभुत्व: लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) Mk1A

इस मंज़ूरी का प्रमुख घटक है — भारतीय वायुसेना (IAF) के लिए 97 नए तेजस LCA Mk1A फाइटर जेट्स की खरीद। इससे पहले 83 विमानों का आदेश पहले ही दिया जा चुका है, जिससे कुल संख्या 180 विमानों की हो जाएगी।

तेजस Mk1A क्या है?

तेजस भारत का स्वदेशी रूप से डिज़ाइन, विकसित और निर्मित सुपरसोनिक लड़ाकू विमान है। Mk1A संस्करण अपने पुराने मॉडल की तुलना में कई उन्नत विशेषताओं से लैस है —

  • एडवांस्ड AESA रडार: बेहतर ट्रैकिंग और टार्गेटिंग क्षमताएं, जिससे विमान “बियॉन्ड विज़ुअल रेंज” युद्ध में और भी घातक बनता है।
  • इम्प्रूव्ड एवियोनिक्स: अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम और मिशन कंप्यूटर बेहतर जीवित रहने की क्षमता प्रदान करते हैं।
  • एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग: विशाल सीमाओं वाले भारत जैसे देश के लिए यह विशेषता संचालन क्षमता को कई गुना बढ़ाती है।
  • मेंटेनेंस एफिशिएंसी: बेहतर सर्विस डिज़ाइन से विमानों की उपलब्धता दर में वृद्धि।

रणनीतिक महत्व

भारतीय वायुसेना लंबे समय से घटती स्क्वाड्रन संख्या से जूझ रही थी। 97 नए तेजस Mk1A विमानों का समावेश इस कमी को भरने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह न केवल वायुसेना को हवाई श्रेष्ठता बनाए रखने में मदद करेगा बल्कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और उसके MSME सप्लायर्स नेटवर्क के लिए दीर्घकालिक औद्योगिक स्थिरता भी सुनिश्चित करेगा।


2. बख्तरबंद ताकत: भविष्य के लिए तैयार अर्जुन MBT Mk-1A

भारतीय थलसेना की आर्मर्ड कोर को और मज़बूत करने के लिए 156 अर्जुन मेन बैटल टैंक (MBT) Mk-1A की खरीद को मंज़ूरी दी गई है। ये टैंक अवडी (तमिलनाडु) स्थित हेवी व्हीकल्स फैक्ट्री में निर्मित होंगे।

अर्जुन टैंक का विकास

अर्जुन भारत का स्वदेशी टैंक कार्यक्रम है, और Mk-1A संस्करण में अपने पिछले मॉडल की तुलना में 72 प्रमुख सुधार शामिल हैं —

  • बढ़ी हुई मारक क्षमता: उन्नत लक्ष्य प्रणाली और गोला-बारूद।
  • सुपीरियर सुरक्षा: आधुनिक कंपोजिट आर्मर और एक्सप्लोसिव रिएक्टिव आर्मर (ERA) जो मिसाइलों से सुरक्षा देता है।
  • गतिशीलता: अपग्रेडेड सस्पेंशन और पावरपैक।
  • हंटर-किलर क्षमता: कमांडर और गनर को एक साथ अलग-अलग लक्ष्यों पर वार करने की सुविधा।

रणनीतिक महत्व

यह निर्णय थलसेना की रेगिस्तानी और अर्ध-रेगिस्तानी युद्ध क्षमताओं को सशक्त बनाता है। इससे भारत की भारी बख्तरबंद वाहनों के स्वदेशी विकास और उत्पादन क्षमता पर भरोसा प्रकट होता है।


3. नौसैनिक शक्ति: नई पीढ़ी के कोरवेट और पनडुब्बियाँ

हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नौसेना की सतही और पनडुब्बी क्षमता को सशक्त बनाने पर विशेष ध्यान दिया गया है।

  • नेक्स्ट-जेनरेशन कोरवेट्स: निगरानी, पनडुब्बी-रोधी युद्ध (ASW) और सतही युद्ध के लिए बहुउद्देशीय युद्धपोत, जिनका मॉड्यूलर डिज़ाइन भविष्य के अपग्रेड को आसान बनाएगा।
  • एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) सबमरीन्स: प्रोजेक्ट-75I के तहत विकसित की जा रही छह आधुनिक पनडुब्बियाँ अधिक समय तक पानी के नीचे रह सकती हैं और शत्रु के लिए लगभग अदृश्य रहती हैं।

रणनीतिक महत्व

चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति को देखते हुए, ये कदम भारतीय नौसेना की समुद्री शक्ति संतुलन बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा हैं। यह भारत की समुद्री सीमाओं और व्यापार मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।


4. जमीनी युद्ध लॉजिस्टिक्स: टॉड गन सिस्टम्स और मोबाइल ECM

किसी भी आधुनिक सेना की ताकत उसके लॉजिस्टिक्स और सपोर्ट सिस्टम्स में निहित होती है।

  • टॉड गन सिस्टम्स: पुराने तोपखाने को बदलने के लिए नए 155mm/52 कैलिबर गन सिस्टम्स जो अधिक दूरी, सटीकता और फायरिंग रेट प्रदान करेंगे।
  • मोबाइल इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम्स: सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए ये सिस्टम्स शत्रु के संचार और रडार को जाम करने में सक्षम होंगे।

रणनीतिक महत्व

हाल के वैश्विक संघर्षों ने दिखाया है कि मजबूत तोपखाना और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर क्षमताएँ युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाती हैं।


‘मेक इन इंडिया’ की रीढ़: रक्षा खरीद में नीतिगत परिवर्तन

इस पूरी मंज़ूरी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है — स्वदेशी उत्पादन पर 98% खर्च का आवंटन। यह भारत की आत्मनिर्भर रक्षा नीति का सशक्त प्रमाण है।

स्वदेशी खरीद के सकारात्मक प्रभाव:

  • रणनीतिक स्वायत्तता – विदेशी निर्भरता कम होगी।
  • रोजगार और आर्थिक वृद्धि – रक्षा उद्योग में हज़ारों नौकरियाँ और MSME नेटवर्क का विस्तार।
  • निर्यात संभावनाएँ – तेजस और ब्रह्मोस जैसे उत्पादों में वैश्विक रुचि।
  • अनुकूलन और नवाचार – भारतीय भौगोलिक और संचालन परिस्थितियों के अनुसार डिज़ाइन।

रणनीतिक आवश्यकता: यह निवेश अभी क्यों आवश्यक था?

  • दो-मोर्चे की चुनौती: पाकिस्तान और चीन दोनों सीमाओं पर तनाव को देखते हुए तकनीकी रूप से उन्नत सेना की आवश्यकता।
  • पुराने बेड़े का आधुनिकीकरण: पुराने MiG-21 विमानों, टैंकों और जहाजों के प्रतिस्थापन की आवश्यकता।
  • चीनी प्रभाव का मुकाबला: हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के जवाब में स्वदेशी नौसेना और वायुसेना सुदृढ़ करना।
  • आत्मनिर्भर भारत दृष्टि: रक्षा क्षेत्र को आत्मनिर्भरता के प्रतीक के रूप में विकसित करना।

आगे की राह: चुनौतियाँ और अवसर

  • समय पर डिलीवरी: HAL और अवडी फैक्ट्री के लिए समयबद्ध उत्पादन एक बड़ी चुनौती होगी।
  • निरंतर तकनीकी नवाचार: निजी क्षेत्र और शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग आवश्यक है।
  • प्रक्रियाओं का सरलीकरण: रक्षा खरीद नीतियों में पारदर्शिता और लचीलापन बढ़ाना होगा।

निष्कर्ष: आत्मनिर्भर और सुरक्षित भारत की ओर

79,000 करोड़ रुपये की रक्षा खरीद योजना केवल एक वित्तीय निर्णय नहीं, बल्कि एक रणनीतिक दृष्टिकोण है। यह तत्काल सुरक्षा आवश्यकताओं के साथ-साथ दीर्घकालिक औद्योगिक और तकनीकी लक्ष्यों को भी साधता है।

तेजस और अर्जुन जैसे स्वदेशी प्लेटफॉर्मों पर भरोसा जताकर भारत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वह एक आधुनिक, आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से सक्षम सैन्य शक्ति बनने के रास्ते पर अग्रसर है।

‘मेक इन इंडिया’ अब केवल एक नारा नहीं, बल्कि भारत के वैश्विक उदय की कहानी का सक्रिय अध्याय बन चुका है।

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